आदि गुरु शंकराचार्य ने चारों धामों की खोज करने के बाद केदारनाथ मंदिर के पास ही समाधि ली थी, जो आज भी है मौजूद। 13वीं से 17वीं सदी तक बर्फ में दबा रहा था केदारनाथ मंदिर। 16 जून 2013 की तबाही भी इस मंदिर का कुछ ना बिगाड़ सकी। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है सबसे ऊंचा है। आइए जानें केदारनाथ के बारे में…
उत्तराखंड में जिला रुद्रप्रयाग में स्थित है हिंदू धर्म से जुड़ा प्रमुख तीर्थ स्थल केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटिर की ऊंचाई पर स्थित है और इस मंदिर की यात्रा करना चारों धामों में से सबसे कठिन है। गढ़वाल के तहत आते हिमालय में बसे इस 1 हजार साल पुराने मंदिर में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊंचा यही है। पाली भाषा में लिखे शिलालेख गर्भगृह की सीढ़ियों पर देखने को मिलते हैं। मंदिर के पास मन्दाकिनी नदी है। मंदिर गर्मियों में 6 महीने के लिए ही खुला रहता है। विश्वनाथ मंदिर, मणिकर्णिक कुंउ और अर्द्धनारीश्वर मंदिर भी यहीं हैं। भैरवनाथ मंदिर, गौरीकुंड के अलावा अन्य कई स्थल देख्नने लायक हैं। गौरीकुंड के पानी में जहां औषधिय गुण हैं, वहीं मान्यता है कि इसमें पानी में स्नान करने से सभी पाप खत्म हो जाते हैं। वासु की ताल समुद्र तल 4135 मीटर की ऊंचाई पर केदारनाथ धाम से 8 किमी दूरी पर है। यह झील हिमालय की पहाड़ियों से घिरी है। झील के नजदीक चौखंभा चोटी भी है। चतुरंगी और वासुकी हिमनदियों को पार करनी पड़ती है।
ऐसा कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने चारों धामों की खोज करने के बाद केदारनाथ मंदिर के पास ही समाधि ली थी और ये समाधि आज भी मौजूद है। समुद्र तल से 1829 मीटर की ऊंचाई पर बसा बासुकी और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल सोनप्रयाग यहां से 19 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा यहां से अन्य कई नदियां भी निकलती हैं। ऐसी धारणा है कि इस जल को छूने पर से ही बैकुण्ठ धाम प्राप्त होता है। 967 वर्ग किलोमीटर में फैला केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य साल 1972 में स्थापित किया गया था, जोकि अलकनंद नदी की घाटी में बसा है। इसमें कई तरह के जानवर और पौधे हैं। पेडों और जानवरों की कई ऐसी दुर्लभ प्रजातियां हैं, जो सिर्फ यहीं देखने को मिलती हैं। उत्तराखंड का राज्य पशु कस्तूरी मृग भी यहां बहुतायत में है।
ये तो आप जानते ही होंगे कि 16 जून 2013 में श्री केदारनाथ मंदिर में मची जल तबाही में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5700 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई लेकिर मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। अगर मंदिर को नुकसान न पहुंचने की बात करें तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुंची। जी हां क्यों यही ये वही मंदिर है जो छोटा हिमयुग के दौरान 13वीं से 17वीं सदी तक बर्फ में दबा रहा और मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। हालांकि बर्फ में दबे रहने से मंदिर की दीवारों पर पड़े निशान साफ देखे जा सकते हैं।
देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक विजय जोशी के अनुसार 400 साल बाद जब बर्फ पीछे हटी तो, इससे मंदिर की दीवारों पर निशान पड़ गए, इन्हीं निशानों के गहन अध्ययन और लाइकोनोमेट्री डेटिंग के बाद मंदिर के 400 साल तक बर्फ में दबे रहने की पुष्टि हुई। लाइकोनोमेट्री डेटिंग तकनीक से शैवाल और उनके कवक को मिलाकर उनके समय का अनुमान लगाया जाता है।
विक्रम संवत् 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को बनवाया था, लेकिन कुछ लोगों के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। मान्यता है कि मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनवाया था, लेकिन वह मंदिर वक्त के थपेड़ों की मार नहीं झेल सका। गढ़वाल विकास निगम कहता है कि मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। यानी छोटा हिमयुग का दौर जो 13वीं शताब्दी में शुरू हुआ था उसके पहले ही यह मंदिर बन चुका था। 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर बना श्री केदारनाथ मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है। दीवारें 12 फीट मोटी और मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। जबकि इसकी छत एक ही पत्थर से बनी है।
केदारनाथ कैसे जाएं
-हरिद्वार, ऋषिकेश और कोटद्वार से गौरीकुंड के लिए बसें चलती हैं। ऋषिकेश और गौरीकुंड से बद्रीनाथ के लिए टैक्सियां और कैब उपलब्ध रहती हैं। गौरीकुंड से केदारनाथ तक घोड़े आदि किराए पर ले सकते हैं। गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक अपना सामान ढोने के लिये घोड़े या पिट्ठू को किराये पर ले सकते हैं।
-केदारनाथ के लिए नजदीकी हवाई अड्डा 239 किमी दूर देहरादून के जॉली ग्रांट में है।
-रेल मार्ग से ऋषिकेश तक पहुंचा जा सकता है, यह केदारनाथ से 221 किलोमीटर दूर है। 207 किलोमीटर जाने के बाद 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा है।
किस मौस में जाएं
केदारनाथ जाने के लिए सही समय मई से अक्टूबर का मध्य होता है। क्यों कि इसके बाद 6 महीने के लिए केदारनाथ से सभी लोग बर्फबारी होने की वजह से निचले स्थानों में आ जाते हैं।