विश्व धरोहरों में से एक फूलों की घाटी

उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित फूलों की घाटी और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को सम्मलित रूप से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर चुका है। फूलों की घाटी का फैलाव 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में है और यहां फूलों की 500 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। आइए जाने फूलों की घाटी की अन्य विशेषताओं के बारे में…

ये जगह हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी हुई है। इसे सन् 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया था। फूलों की घाटी पहुँचने के लिए चमोली जिले का अन्तिम बस अड्डा गोविन्दघाट 275 किमी दूरी पर है। फूलों की घाटी का प्रवेश स्थल यहां से 13 किमी दूर है। जहाँ से पर्यटक 3 किमी लंबी और आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं। जोशीमठ से गोविन्दघाट की दूरी 19 किमी है। ऐसा कहा जाता है कि नंदकानन के नाम से इसका वर्णन रामायण और महाभारत में भी मिलता है माना जाता है, कि यही वो जगह है जहां से हनुमान जी लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाए थे।
गौरतलब है कि स्थानीय लोग मानते हैं कि ये जगह परियों और किन्नरों का निवास है। इस लिए वो अब भी यहां जाने से कतराते हैं। हर साल बर्फ़ पिघलने के बाद ये घाटी बेशुमार फूलों से भर जाती है। यहां मिलने वाले सभी फूलों में औषधीय गुण होते हैं। सभी फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल होता है। यहीं नहीं यहां सैकड़ों बहुमूल्य व अत्यंत दुर्लभ जड़ी-बूटियां और वनस्पति पाई जाती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षो में पूरी देखरेख न होने से यहाँ बड़े पैमाने पर जड़ी बूटियों की तस्करी होने लगी थी। लेकिन दस साल पहले यहाँ लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी और उसके बाद वनस्पतियों को एक बार फिर फलने-फूलने का मौक़ा मिला।

फूलों की घाटी में काम करने वाले बागान विशेषज्ञ दर्शन सिंह नेगी का कहना है कि उन्हें इस जगह की एक बात बहुत हैरान करती है कि हर हफ्ते फूलों के खिलने का पैटर्न बदल जाता है। जो फूल इस हफ़्ते खिलेंगे तो अगले हफ्ते वहां कोई और ही फूल नजर आएगा।

ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने की थी इस जगह की खोज
1931 में कामेट पर्वत के अभियान से लौटते समय से फूलों की घाटी का पता ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और साथी आरएल होल्डसवर्थ ने लगाया था। फूलों की घाटी की सुंदरता ने उन्हें यहां 1937 में दोबारा आने को विवश कर दिया। इसके बाद उन्होंने 1968 में वैली ऑफ फ्लॉवर्स के नाम से एक किताब प्रकाशित करवाई।

जाने का समय: नवंबर से मई तक ये जगह बर्फ से ढकी रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान यहाँ कई प्रजातियों के लाखो पुष्प और पौधे एक साथ खिल उठते है। मध्य सितंबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक यहां जाने का सही समय है।

कैसे जाएं: पर्यटकों को यहां आने के लिए ऋषिकेश से गोविंदघाट तक मोटर मार्ग और फिर गोविंदघाट से 17 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना होता है।

4 Responses on “विश्व धरोहरों में से एक फूलों की घाटी”

Sandy g says:

Very nic ….

Sandy g says:

Nic…..

Arun thakur says:

bhot hi badhiyaa dhrishay……hope so should visit someday

gemini says:

thanks arun ji