विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ के तहत सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और शिक्षण संस्थाओं सहित पूरे विश्व में प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने के लिए लोगों को जागरूक किया गया। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि अगर समय रहते प्रदूषण न रोका गया तो हम अपना भविष्य गंवा बैठेंगे। इस लिए सिर्फ संस्थान स्तर पर या सरकार के स्तर पर ही कोशिश नहीं होनी चाहिए, बल्कि प्रति व्यक्ति यह प्रण करे कि न मैं प्रदूषण फैलाउंगा और दूसरों को भी स्वच्छता के लिए जागरूक करूंगा, तब जाकर हमारा भविष्य बच पाएगा।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने उस देवभूमि पर जन्म लिया जिसका स्वच्छ प्रदूषण रहित वातावरण पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन अगर जल्द ही प्रयास न किए गए, तो इस बात का डर है कि कहीं उत्तराखंड के सिर से स्वच्छ वातावरण का ताज कहीं छिन न जाए।
प्रतिदिन निकल रहे 1600 टन कचरे में से 17% कचरा प्लास्टिक
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) ने 2017 में प्रदेश में एक सर्वे कराया। इसके अनुसार देवभूमि के 81 नगर निकाय से रोजाना करीब 1600 टन कचरा पैदा हो रहा है और इसमें 17 प्रतिशत प्लास्टिक होता है। अगर औसतन टन के हिसाब से बात करें तो इस 1600 टन में 275 टन केवल प्लास्टिक की ही मात्रा समाहित होती है। अफसोस किसी भी निकाय के पास कचरे को मैनेज करने का कोई ठोस प्रबंध नहीं है।
मसूरी व नैनीताल में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण पर 12 रुपए प्रति किलोग्राम खर्च
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे से मिली जानकारी के अनुसार प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए मसूरी और नैनीताल में 12 रुपए प्रति किलोग्राम खर्च आ रहा है जबकि हिमालयी क्षेत्रों में प्रतिदिन 40 रुपए, मध्य हिमालयी क्षेत्रों में प्रतिदिन 20 रुपए खर्च है।