महिलाओं को सशक्त बनाने का इरादा रखने वाली शीतल ने पिछले साल करीब 23 वर्ष की उम्र में विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा (8586 मीटर) को फतह कर विश्व रिकार्ड बनाकर एवरेस्ट चढ़ने की मंशा जता दी थी। एक मई को दिल्ली से काठमांडू रवाना होते समय अमर उजाला से बातचीत में पहाड़ की इस बेटी ने कहा था कि हर पर्वतारोही की तरह उसका भी सपना माउंड एवरेस्ट पर अपने देश का झंडा फहराना है। साथ ही शीतल ने उम्मीद जताई थी कि उसके कामयाब होने के बाद एडवेंचर टूरिज्म के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और बढ़ेगी।
शीतल ने वर्ष 2014 में एनसीसी ज्वाइन की थी। इस दौरान ही उन्होंने माउंटनेयरिंग के बेसिक गुर सीखे। शीतल ने देश के विख्यात माउंटेनियरिंग संस्थानों से माउंटेनियरिंग का बेसिक और एडवांस कोर्स किया है। एवरेस्ट, कंचनजंगा से पहले शीतल ने सतोपंथ (7075 मीटर), त्रिशूल (7120 मीटर) के साथ कई अन्य पर्वतों का सफलतापूर्वक आरोहण किया है। कंचनजंगा फतह करने के बाद से ही शीतल ने मिशन एवरेस्ट की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने ट्रेनिंग के लिए कुमाऊं की पंचाचूली पर्वत श्रंखला (धारचूला) को चुना था।
एवरेस्टर योगेश गर्ब्याल बताते हैं कि अभ्यास के दौरान शीतल धारचूला की दारमा और व्यास घाटी में 20 किलो सामान के साथ रोजाना 8 से 9 घंटे चलती थीं। शीतल अभियान की तैयारी के लिए इसी साल जनवरी में लेह भी गईं थीं। एवरेस्टर गर्ब्याल ने बताया कि शीतल के साथ वह वर्ष 2017 से कई अभियानों में हिस्सा ले चुके हैं। कंचनजंगा फतह भी उन्होंने साथ किया। शीतल फिजिकली और मेंटली इस (एवरेस्ट) बड़े अभियान के लिए तैयार थी।
दारमा, व्यास घाटी बन सकती है पर्वतारोहण प्रशिक्षण का हब
एवरेस्ट, कंचनजंगा समेत इंडियन हिमालय के कई पर्वतों में देश का झंडा फहरा चुके धारचूला के गर्ब्यांग निवासी योगेश गर्ब्याल कहते हैं कि कुमाऊं माउंटेनियरिंग ट्रेनिंग के अनुकूल है। भविष्य में दारमा और व्यास घाटी पर्वतारोहण अभ्यास का हब बन सकता है। शीतल की सफलता ने इस बात को साबित भी किया है।
शीतल पर्वतारोहण के लिए बच्चों को करतीं है प्रोत्साहित
वर्ष 2018 में शीतल ने कुमाऊं मंडल विकास निगम, रं यूथ फोरम धारचूला और द हिमालयन गोट्स संस्था के साथ मिलकर 350 बच्चों को निशुल्क पर्वतारोहण का प्रशिक्षण दिया था। शीतल समय-समय पर बच्चों को पर्वतारोहण के टिप्स देती रहती हैं।
धारचूला के लाल करते हैं कमाल
पिथौरागढ़ जनपद के सीमांत धारचूला क्षेत्र के दारमा, व्यास और चौंदास घाटी की दो बेटियों सहित पांच पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट फतह करके दिखाया है। इन सभी पर्वतारोहियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद मजबूत इरादों के बल पर यह कीर्तिमान स्थापित किया है।
धारचूला के व्यास घाटी के गुंजी गांव निवासी पदमश्री मोहन सिंह गुंज्याल, गर्ब्यांग के योगेंद्र गर्ब्याल, चौंदास घाटी के सोसा गांव की कविता बूढ़ाथोकी, दारमा घाटी के सौन गांव के आईटीबीपी में डिप्टी कमांडेंट रतन सिंह सोनाल और सुमन कुटियाल ने एवरेस्ट समेत देश-विदेश की कई चोटियों में तिरंगा फहरा कर देश और क्षेत्र का नाम रोशन किया है। एवरेस्ट विजेता व्यास घाटी की सुमन कुटियाल को वर्ष 1994 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
धारचूला में जन्मी रं समाज की महिला चंद्रप्रभा ऐतवाल एवरेस्ट फतह करने में सफल नहीं हो पाईं, लेकिन उनके मार्ग दर्शन में कई पर्वतारोहियों ने इस चोटी पर परचम फहराया। युवा पर्वतारोही योगेंद्र गर्ब्याल का कहना है कि पर्वतारोहण के क्षेत्र में अवसरों की कोई कमी नहीं है। यदि युवा इसे करियर के रूप में अपनाएं तो उनका भविष्य बेहतर हो सकता है।
सात बार एवरेस्ट फतह कर चुके हैं मुनस्यारी के लवराज
बीएसएफ के सहायक सेनानी एवं मुनस्यारी के बौना गांव निवासी पद्मश्री लवराज धर्मशक्तू सात बार एवरेस्ट फतह कर चुके हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी सागरमाथा में सात बार चढ़ने वाले लवराज भारत के पहले पर्वतारोही हैं। लवराज ने वर्ष 2018 में सातवीं बार एवरेस्ट फतह किया। खास बात यह है कि सात बार एवरेस्ट फतह करने वाले लवराज बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट चढ़ चुके हैं। लवराज ऐसे पर्वतारोही जिन्होंने चारों दिशाओं की तरफ से एवरेस्ट चढ़ने में सफलता हासिल की है। लवराज वर्ष 1998 में पहली बार एवरेस्ट में चढ़े थे। बीएसएफ में जाने के बाद वर्ष 2006, 2009, 2012, 2013, मई 2017 और ठीक एक साल बाद मई 2018 में सातवीं बार एवरेस्ट फतह किया था।
-साभार: अमर उजाला