बचपन मे कंडली की मार तो सभी ने खाई होगी लेकिन पूर्व में इसका वैज्ञानिक एवं औद्योगिक महत्व किसी को मालूम नहीं था। आज यही कंडाली विश्व भर में eco-fabrics नाम से प्रसिद्ध है और Italian fashion show में धूम मचा रही है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडली और कुंमाउनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica deoica है और ये Urticacae परिवार का पौधा है। उत्तराखण्ड में कडंली की खेती तो नहीं की जाती अपितु यह प्राकृतिक रूप से बंजर भूमी पर रास्ते और सड़कों के किनारे स्वतः ही उग जाती है। जबकि विश्व के अन्य देशों में कंडाली के वैज्ञानिक व औद्योगिक महत्व को जानकर आज ही नहीं वर्षो से कंडली को औधोगिक रूप से उगाया जाता रहा है। आज विश्व भर में कंडली की पत्तियों की चाय, कैप्सूल तथा कंडली से निर्मित eco-fabrics नाम से धूम मचा रही है।
कंडली का वैज्ञानिक महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है, कि इसमें विटामिन A, C Iron, पोटैशियम, मैग्निज तथा कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसको प्राकृतिक Multi विटामिन के नाम भी दिया गया है। कई तरह के विटामीन से भरपूर होने के साथ-साथ लगभग 16 Amino Acids Carotenoids (Beta Carotene) का भी प्रमुख स्रोत है। पारम्परिक रूप से कंडली में मौजूद कई महत्वपूर्ण अवयवों के होने से इससे किडनी रोग, UTI तथा ह्रदय रोगों के उपचार के लिए प्रयुक्त किया जाता है। Carboxylic Acid तथा Formic Acid के विद्यमान होने की वजह से कई कीटों के नियंत्रण के लिए कीटनाशक के रूप मे भी प्रयोग किया जाता है तथा इसके कांटों में मौजूद हिस्टामीन की वजह से चमड़ी को छू जाने के बाद जलन होती है। कंडली में गेहु की अपेक्षाकृत Tanin, Total Polyphenol Carotenoids की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। कंडली प्रोटीन 28.5g/100gm, वसा 5.2g/100gm, कार्बोहायड्रेट 47.4g/100gm, पोटैशियम – 917.2gm/100gm, कैल्शियम – 113.gm/100gm तक पाए जाते हैं।
वर्तमान समय में कंडली के ऊपरी भाग में 6 प्रकार के तत्व जैसे Cafferic acid, rutin, quercetin, hyperin, isoquercitin तथा beta-sitosterol पाये जाते हैं तथा विटामिन A, C तथा D से परिपूर्ण होने के साथ-साथ 21-23 प्रतिशत प्रोटीन, 9-21 प्रतिशत फाईवर, 50 micro g/gm carotene, 4 micro, g/gm Ribolloflavin तथा 10 micro g/gm Vitamin E पाया जाता है। यदि कंडली को Plautry feed में मिलाया जाए तो 15-20 प्रतिशत प्रोटीन तथा 60-70 प्रतिशत विटामिन्स intake बढ़ जाता है, जो कि green Ploutry Feed की जरूरत को 30 प्रतिशत तक कम कर देता है। औद्योगिक रूप से यह Fiber के साथ-साथ/औद्यागिक Chlorophyll का भी मुख्य स्रोत माना जाता है। चूंकी कंडली एक बहुवर्शि पौधा है, और यूरोप मे द्वितीय विश्व युद्व से Fiber Plant के लिए औद्योगिक रूप से उगाया जाता है। कंडली के पौधे की सब्जी, चारा, सौंदर्य प्रसाधन, औषधि तथा biodynamic preparations में उपयोग किया जाता है। Cotton के इजात से पूर्व यूरोप में कंडली को फाइवर के रूप में द्वितीय विश्व युद्व के समय आरंभ हुआ था। इसके बाद 1940 में लगभग 500 हेक्टेयर में कडांली से फाइवर उत्पादन हेतु जर्मन एवं Austria में शुरू किया।
यह साधारण से बिना किसी भारी-भरकम तकनीकी के उगने वाली कडांली एक बेहतर औद्योगिक फसल के रूप में परिवर्तित की जा सकती है केवल फाइवर ही नहीं बल्कि और कई उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं। वैसे तो Cotton एक high water consumable के साथ-साथ High pesticide consumable फसल बन चुकी है तथा एक GM Cotton का भविष्य अभी संशय भरा है जिससे कंडली विश्वभर में फाइबर उत्पादन हेतु बेहतर फसल में परिवर्तित की जा सकती है तथा प्रदेश की आर्थिकी के लिए बेहतर साधन बन सकती है।
विश्व के कई देशों में कई कंपनियों का विभिन्न शोध संस्थानों के साथ मिलकर उच्च कोटी की कंडली का औद्योगिक उत्पादन पर जोर दे रही है। जैसे FinFlax Ltd ने Agriculture Research Centre of Finland, तथा Institute of Agri biotechnology, Austria, Institute of Applied Research, Germany, Institute of Plant Production and breeding Switzerland तथा अन्य कई वैज्ञानिक संस्थानो द्वारा Developing of cultivation methods, fiber processing, Mechanical fiber processing, production of knitted Clothes पर शोध कार्य किया ताकि कंडली से निर्मित फाइवर से विश्वभर में मांग पूरी की जा सके तथा विश्वभर में “Cotton replacement using lower environmental Impacting crops” का नाम दिया गया।
पूर्व मे कंडली को most undervalued of economic plant की तरह जाना जाता था जबकि कंडाली से Cotton की तरह फाइवर उद्योगों में तथा अन्य कई उद्योगों में जैसे Cosmetic, Culinary, Oil के साथ caffeine free green tea के रूप में विश्व मे जाना जाता है। वर्तमान में कंडाली से Silky Fiber का निर्माण किया जिसे “Ramie” के नाम से विश्व मे जाना जाता है। कंडली की चाय को यूरोप के देशो में Power House of Vitamin and minerals माना जाता है। जो कि Immunity को भी बढ़ाता है। कंडली की जड़ों से Benign Prostatic Hyperplasia के उपचार के लिए भी प्रयोग किया जाता है। बाजार में healthy Prostate तथा Normal Urinary flow के लिए Nettle Root Capsule मौजूद है।
जर्मन कमीशन ने भी urinary infections तथा Urinary gravel के रोकथाम के लिए कंडली की पत्तियों से उपचार को मान्यता दी है। जर्मनी द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान German troops के वर्दी के लिए कंडली से विभिन्न फाइवर से तैयार किया था। तत्पश्चात कृत्रिम फाइवर के आने की वजह से कंडली से निर्मित फाइवर को Under Valued किया गया। जबकि वर्ष 2015 में विश्व बाजार में फाइवर की खपत 95-6 Million टन थी जिसमें Oil based कृत्रिम फाइवर सर्वाधिक 62.1%, Cellulose and protein based (कंडली सहित) 25.2 % , Wood based Cellulose फाइबर 6.4 % तथा अन्य प्राकृतिक फाइबर 6.4 % तथा अन्य प्राकृतिक फाइवर 1.5% का योगदान रहा है।
विश्व बाजार में इको फाइवर के मानव स्वास्थ्य, आराम तथा पर्यावरणीय दृष्टिकोण से लगातार मांग बढ़ रही है। विश्व बाजार में प्रकृतिक फाइवर का 2020, 74.65 Billion अमेरिकी डॉलर लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2014 में भारत तथा अमेरिका द्वारा इको-फाइवर में सबसे बड़ा बाजार रहा है जो कि 53 प्रतिशत योगदान देता है। जबकि भारत विश्व का इको-फाइवर का सबसे ज्यादा उत्पादक तथा उपभोक्ता रहा है जो विश्व का 35 प्रतिशत योगदान देता है। वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका तथा भारत विश्वभर में 40 प्रतिशत योगदान रखते हैं। विश्व भर में इको-फाईवार निर्माता Lenzing AG Austria, Garsion Industries Limited India, Teijin Ltd जापान, US Fibers अमेरिका विश्वस्तरीय मुख्य निर्माता है।
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डॉ. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्,
उत्तराखण्ड।