गांधी तेरे इस राम राज्य में,
गण और तंत्र की लड़ाई है,
अब शहीदों की ये दुहाई है,
क्यों देश को आजादी दिलाई है।
समाजवाद की दुहाई देकर,
हालत देश की क्या बनाई है,
चोर और उचक्कों की सगाई है,
जनता फिर भी भरमाई है।
आतंक की बदली छाई है,
चांद पर भी अमित चढ़ाई है,
आधी आबादी ने रेल दौड़ाई है,
कोख में उनकी जिंदगी दुखदाई है।
अब तो मोबाइल में करंसी आई है,
किस्मत बनी तो कुछ ने मिटाई है,
नोटबंदी से चली सुखद पुरवाई है,
सबको 26 जनवरी की बधाई है।
-अमित शुक्ला
आंखों के बोलने पे होंट जो सिले रहे
दोनों समझते रहे, फिर भी चुप रहे।
कांधे पे सिर झुकाने की हसरत रही,
दिल में बसाने की, बस जुस्तजु रही,
साथ कब तक, यही तो बस फिक्र रही।
अकेले में ‘नीर-नयन’
को दिलासा देते रहे,
वो सलामत रहे ‘अमित’
पल-पल दुआ करते रहे।
मिले तो उनसे,
हाल गैरों से पूछते रहे,
गम भुलाने को
‘चांदी के मोती’ सिरहाने रहे।
मन करता नेता बन जाऊँ,
नेता बन कुर्सी पर छाऊँ,
मार कुण्डली कुर्सी पर,
सपने अपने सच कर जाऊँ।
वोट मांगने घर-घर जाऊँ,
सौ-सौ वादे कर मैं आऊँ,
वोट के बदले नोट जो दूं तो,
ग्रांट से भरपाई उसकी कर जाऊँ।
अपनों को हर ठेके दिलवाऊँ,
तिजोरी घर की मैं भर जाऊँ,
जनता के हक की आढ़ में,
माल सरकारी चट कर जाऊँ
मन करता नेता बन जाऊँ
सपने अपने सच कर जाऊ।
नोटः ऐसे भ्रष्ट नेताओं से बचें।
बेटी हूं मैं, बेटी तेरी
मां मुझको है, तुझ से प्यार,
पूरा तुझ पर, मेरा भरोसा,
जालिम जमाने पर, न एतबार।
ये नई कहानी, नहीं है मेरी,
सदियों से ये, होता आया,
मां तूने चाहा है, मुझको
पर जालिम को और ही भाया।
रोक दिए, हैं कदम जो मेर
तोड़ दिए है, स्वपन जो मेरे
कर्म जबरन, है तुझसे करवाया,
कोख में, मुझको तेरे मरवाया।
यतन तेरे, न कुछ कर पाए,
कितने तूने अश्क बहाए,
मां यूं कब तक चलता रहेगा,
बेटी का कत्ल, कब थमेगा।
मुझे भी देखनी है, रंगीन दुनिया,
क्यों रोकती है ये, संगीन दूनिया,
मैं भी चाहूं तेरे, आंचल की छाया,
क्यों मुझको सिर्फ खोया न पाया।