जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पास शनिवार को बारूदी सुरंग को निष्क्रिय करते समय विस्फोट हो गयाा। इसमें शहीद हुए मेजर चित्रेश बिष्ट की अगले महीने शादी होने वाली थी। नौशेरा सेक्टर में बारूदी सुरंग का पता लगाने पर गठित की गई बम निरोधक दस्ते की अगुवाई मेजर त्रितेश बिष्ट कर रहे थे। एक बारूदी सुरंग तो निष्क्रिय कर दी पर दूसरी सुरंग में विस्फोट होने से मेजर बिष्ट गंभीर जख्मी होकर शहीद हो गए।
शहीदी का पता चलते ही, देहरादून की नेहरू कॉलोनी में रिश्तेदार और लोग उनके घर पहुंच गए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट और पार्टी विधायक विनोद चमोली और उमेश शर्मा काऊ भी मेजर के घर पहुंचे। परिवार से जुडे़ एक सूत्र ने बताया कि बिष्ट की शादी तय हो गई थी और वह 28 फरवरी को घर लौटने वाले थे। वह सात मार्च को शादी के बंधन में बंधने वाले थे। मेजर बिष्ट के पिता सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी और मां गृहिणी हैं। उनका परिवार अल्मोड़ा जिले के रानीखेत का रहने वाला था।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ट्वीट कर जताया शोक
मेजर त्रितेश बिष्ट के निधन पर शोक व्यक्त करते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने ट्वीट किया कि मैं मेजर बिष्ट द्वारा देश की सेवा में दिए गए सर्वोच्च बलिदान को सलाम करता हूं और शहीद के परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। दुख की इस घड़ी में पूरा देश उनके साथ खड़ा है।
राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने भी दु:ख जताया
उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ के तहत सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और शिक्षण संस्थाओं सहित पूरे विश्व में प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने के लिए लोगों को जागरूक किया गया। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि अगर समय रहते प्रदूषण न रोका गया तो हम अपना भविष्य गंवा बैठेंगे। इस लिए सिर्फ संस्थान स्तर पर या सरकार के स्तर पर ही कोशिश नहीं होनी चाहिए, बल्कि प्रति व्यक्ति यह प्रण करे कि न मैं प्रदूषण फैलाउंगा और दूसरों को भी स्वच्छता के लिए जागरूक करूंगा, तब जाकर हमारा भविष्य बच पाएगा। Read More
पटियाला, पंजाब: यूथ ऑफ उत्तराखंड संस्था ने चेयरमैन विनोद रावत और प्रधान मनोहर सिंह बिष्ट की अगुवाई में दिनांक रविवार 16 जुलाई 2017 को प्रथम पौधरोपण मुहिम चलाई। महासचिव आकाश ठाकुर और दीपक बिष्ट, कोषाध्यक्ष भूपेश बिष्ट ने मुहिम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम के मुख्य मेहमान ग्लोबल ह्यूमन सर्विस ऑर्गेनाइजेशन के प्रधान कर्नल बिशन दास जी ने पौधा लगाकर मुहिम की शुरुआत की। उनके साथ आशीष आहूजा और श्रेय मेहता विशेष तौर पर पहुंचे। इस मौके पर उपप्रधान महिंद्र रावत, उप कैशियर प्रदीप रावत, मीडिया प्रभारी प्रमोद रावत, अरुण ठाकुर, मनीष रावत, हरदीप कठैत, आनंद नेगी, सूरज बिष्ट, रविंदर बिष्ट, प्रेम मनराल, जगदीश नेगी और अन्य मौजूद रहे।
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सांप के काटने का डर हर किसी को होता है, लेकिन इस डर को खुद पर हावी न होने दें। खासकर उस समय जब सांप सच में काट ले। क्योंकि कई मौतें सांप के जहर से नहीं बल्कि उसके डर से होती हैं। अगर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर जारी रिपोर्ट की मानें तो हर साल 83 हजार लोग सांप के काटने का शिकार होते हैं, इनमें से 11 हजार लोगों की मौत के मुंह में चले जाते हैं।
लगभग 3000 प्रजातियों में 300 सांप ही जहरीले
दुनिया में लगभग 2600 से 3000 सापों की प्रजातियां होती हैं, इनमें लगभग 300 सांप ही जहरीले होते हैं। ज्यादातर जहरीले सांप मानव शरीर में बहुत कम जहर छोड़ते हैं। भारत में जहरीले सांपों की 13 प्रजातियां हैं। इनमें से चार बेहद जहरीले सांप कोबरा, रस्सेल वाइपर, स्केल्ड वाइपर और करैत हैं। सबसे ज्यादा मौतें नाग या गेहूंवन और करैत के काटने से होती हैं।
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बचपन मे कंडली की मार तो सभी ने खाई होगी लेकिन पूर्व में इसका वैज्ञानिक एवं औद्योगिक महत्व किसी को मालूम नहीं था। आज यही कंडाली विश्व भर में eco-fabrics नाम से प्रसिद्ध है और Italian fashion show में धूम मचा रही है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडली और कुंमाउनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica deoica है और ये Urticacae परिवार का पौधा है। उत्तराखण्ड में कडंली की खेती तो नहीं की जाती अपितु यह प्राकृतिक रूप से बंजर भूमी पर रास्ते और सड़कों के किनारे स्वतः ही उग जाती है। जबकि विश्व के अन्य देशों में कंडाली के वैज्ञानिक व औद्योगिक महत्व को जानकर आज ही नहीं वर्षो से कंडली को औधोगिक रूप से उगाया जाता रहा है। आज विश्व भर में कंडली की पत्तियों की चाय, कैप्सूल तथा कंडली से निर्मित eco-fabrics नाम से धूम मचा रही है।
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उत्तराखंड में पाया जाने वाले अमेस फल काफी गुणकारी होता है। इसके काफी औषधीय गुण होते हैं। इसे पहले केवल वनस्पति ही समझा जाता था। लेकिन जड़ी बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर के वैज्ञानिकों ने इसका औषधीय गुण पहचाना। विटामिन की भरपूर मात्रा होने की वजह से कुछ देश अमेस फल का स्पोर्ट्स ड्रिंक बनाने को मजबूर हो गए हैं और काफी पसंद भी किया जाने लगा है। उत्तराखंड में अमेस फल की दो प्रजातियां मिलती हैं। समुद्र तल से करीब ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले में इस फल की बहुतायत है।
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