म्यारा डांड्यूं कांठ्यूं का मुलुक जैल्यु, बसंत रितु म जैई-2
हैरु बण मां बुरांसि का फूल, जब बण आग लगाणा होला..
पीता पखों थैं फ्योंलिं का फूल, पिंगला रंग मां रंग्याणा होला ..
लइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना-2, होलि धरती देखि ऐई…
बसन्त रितु म जैई…
मेरा डांड्यूं….
रन्गील फागुन होल्येरोन कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि…
कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..
किर्मिचि केसरि रंग कि बाढ-2, प्रेम का रंगों मा भिजी ऐई…
बसन्त रितु म जैई….
मेरा डांड्यूं….
बिन्सिरि देय्लिओं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत…
चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत…
मस्त बिग्रैला बैखुं का ठुम्का-२, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ….
बसन्त रितु म जैई….
मेरा डांड्यूं….
सैणा दमला र चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि…
खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..
वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बच्पन, -२ ऊक्रि सक्लि त ऊक्रि कि लैयि…
बसन्त रितु म जैयि…
म्यारा डांड्यूं कांठ्यूं का मुलुक जैल्यु, बसंत रितु म जैई-2
गीतकारः श्री नरेन्द्र सिंह जी (Narendra Singh Negi)