आंखों के बोलने पे होंट जो सिले रहे
दोनों समझते रहे, फिर भी चुप रहे।
कांधे पे सिर झुकाने की हसरत रही,
दिल में बसाने की, बस जुस्तजु रही,
साथ कब तक, यही तो बस फिक्र रही।
अकेले में ‘नीर-नयन’
को दिलासा देते रहे,
वो सलामत रहे ‘अमित’
पल-पल दुआ करते रहे।
मिले तो उनसे,
हाल गैरों से पूछते रहे,
गम भुलाने को
‘चांदी के मोती’ सिरहाने रहे।
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आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” शनिवार 14 अक्टूबर 2017 को लिंक की जाएगी ….
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आपका धन्यवाद।
सुन्दर
आपका धन्यवाद।