तड़प

alone2आंखों के बोलने पे होंट जो सिले रहे
दोनों समझते रहे, फिर भी चुप रहे।

कांधे पे सिर झुकाने की हसरत रही,
दिल में बसाने की, बस जुस्तजु रही,
साथ कब तक, यही तो बस फिक्र रही।

अकेले में ‘नीर-नयन’
को दिलासा देते रहे,
वो सलामत रहे ‘अमित’
पल-पल दुआ करते रहे।

मिले तो उनसे,
हाल गैरों से पूछते रहे,
गम भुलाने को
‘चांदी के मोती’ सिरहाने रहे।

4 Responses on “तड़प”

vibha rani shrivastava says:

आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” शनिवार 14 अक्टूबर 2017 को लिंक की जाएगी ….
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा … धन्यवाद!

gemini says:

आपका धन्यवाद।

Dr Sushil Kumar Joshi says:

सुन्दर

gemini says:

आपका धन्यवाद।