मान्यता है कि बाढ़ में बहकर कालीमठ मंदिर में स्थापित मूर्ति के सिर वाला हिस्सा गांव धारी नदी के किनारे पहुंचा। गांव के लोगों ने इसे चट्टान पर स्थापित किया। फिर मूर्ति को यहां हटाना चाहा पर नहीं हटा पाए और ये धारी देवी शक्तिपीठ बन गया। श्रद्धालु यहां खींचे चले आते हैं। आइए जाने मां धारी देवी के अन्य खासियतों के बारे में…
इसे दक्षिणी काली माता के नाम से भी जाना जाता है। ये प्राचीन सिद्धपीठ श्रीनगर गढ़वाल से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है कलियासोड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे स्थित है मां धारी देवी का मंदिर। दिल्ली से इसकी दूरी 360 किलोमीटर है।
एक दिन में तीर बार रूप बदलती है मूर्ति
लोगों का मानना है कि मां धारी देवी की ये मूर्ति एक दिन में तीन बार रूप बदलती है। सुबह कन्या, दोपहर जवान तो शाम को वृद्ध दिखाई देती है चार धाम यात्रा पर जाने वाले लोग मां धारी देवी के दर्शन जरूर करते हैं। क्योंकि मां धारी देवी को चार धामों का रक्षक माना जाता है।
श्रीनगर डैम की वजह से मूर्ति को मूल स्थान से हटाया गया
अफसोस मूर्ति को अपनी मूल जगह से हटाकर दूसरी जगह स्थापित कर दिया गया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मूर्ति को जब 16 जून 2013 की शाम 6 बजे अपनी मूल जगह से हटाया गया तो ठीक रात 8 बजे आए सैलाब ने कई लोगों की जान ले ली।