उत्तराखंड में चंपावत जिले के देवीधुरा इलाके में हर साल रक्षाबंधन के दिन बग्वाल मेले का आयोजन होता है। इस मेले की खास बात है कि यहां देवी की आराधना करने के लिए भक्त एक दूसरे के साथ पत्थर का युद्ध करते हैं। जी हां सुनने में तो ये अजीब लगता है लेकिन ये कहानी नहीं उत्तराखंड की सच्चाई है। बग्वाल मेले के दौरान जय मां बाराही के जयकारों के बीच पत्थर बरसाए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां बाराही मां के तेज के आगे खड़े हो कोई मां को देख नहीं सका, जिसने कोशिश की भी वो अंधा हो गया। चार राजपूत खामों से जुड़े लोग मुख्यता इस मेले में हिस्सा लेते हैं। इनमें गहरवाल, लमगड़िया, वलकिया और चम्याल खाम शामिल हैं।
श्रावण शुक्ल के दिन चारों खामों के लोग एक दूसरे को निमंत्रण देकर बग्वाल मेले में पहुंचते हैं। इन चार खामों के अलावा अन्य कोई इसमें भाग नहीं लेता। इस दौरान चम्याल, गहरवाल खाम के राजपूत पूरब और लमगड़िया, वलकिया पश्चिमी छोर से मैदान में प्रवेश करते हैं। हालांकि सबके पास खास लकड़ी से बनी ढाल होती है। सभी को बाराही मंदिर के प्रधान पुजारी आशीर्वाद देते हैं। लमगड़िया खाम पहले वार करता है। कहते हैं कि एक व्यक्ति के बराबर खून बह जाने के बाद प्रधान पुजारी शंख बजाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हैं। अंत में सभी एक दूसरे के गले मिलते हैं। मेले को देखने देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं।
देवी की आकाशवाणी के साथ हर साल किया जाने लगा बग्वाल मेला
ऐसा माना जाता है कि कई सालों पहले देवी के गणों (देवी के सेवक) द्वारा इन चार खामों के व्यक्तियों की बारी-बारी नर बलि ली जाती थी। एक बार एक वृद्धा ने अपने बच्चे को बचाने के लिए देवी बाराही की तपस्या की। देवी ने तपस्या से खुश होकर आकाशवाणी की कि चारों खामों के राजपूतों को हर साल बग्वाल का आयोजन करना होगा। तब से ही बग्वाल मेला हर साल आयोजित किया जा रहा है।